गिरीचे मस्तकी गंगा | तेथुनि चालिली बळें |
धबाबां लोटल्या धारा | धबाबां तोये आदळे || १||
गर्जतो मेघ तो सिंधू | ध्वनीकल्होळ उठीला |
कड्यासी आदळे धारा | वात आवर्त होतसे ||२||
तुषार उठती रेणु | दुसरें रज मातलें |
वातमिश्रित ते रेणु | सीतमिश्रित धुकटें ||३||
दराच तुटला मोठा | झाडखंडे परोपरीं |
निबीड दाटली छाया | त्यामधें वोघ वाहती ||४||
गर्जती श्वापदें पक्षी | नाना स्वरें भयंकरें |
गडद होतसे रात्रीं | ध्वनिकल्लोळ उठती ||५||
कर्दमु निवडेना तो | मनसी सांकडें पडे |
विशाळ लोटली धारा | तीखाले रम्य विवरें ||६||
विश्रांती वाटते येथे | जावया पुण्य पाहिजे |
कथा निरुपणे चर्चा | सार्थके काळ जातसे ||७||
— रामदास
धबाबां लोटल्या धारा | धबाबां तोये आदळे || १||
गर्जतो मेघ तो सिंधू | ध्वनीकल्होळ उठीला |
कड्यासी आदळे धारा | वात आवर्त होतसे ||२||
तुषार उठती रेणु | दुसरें रज मातलें |
वातमिश्रित ते रेणु | सीतमिश्रित धुकटें ||३||
दराच तुटला मोठा | झाडखंडे परोपरीं |
निबीड दाटली छाया | त्यामधें वोघ वाहती ||४||
गर्जती श्वापदें पक्षी | नाना स्वरें भयंकरें |
गडद होतसे रात्रीं | ध्वनिकल्लोळ उठती ||५||
कर्दमु निवडेना तो | मनसी सांकडें पडे |
विशाळ लोटली धारा | तीखाले रम्य विवरें ||६||
विश्रांती वाटते येथे | जावया पुण्य पाहिजे |
कथा निरुपणे चर्चा | सार्थके काळ जातसे ||७||
— रामदास
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